संगठन को विस्तार देने के लिए एआईएमएनएए ने की सभा

 

दिल्ली। गत 2 जुलाई को करोल बाग के होटल कबीर पैलेस में ऑल इंडिया महापदम नंद एजुकेटेड एसोसिएशन की मीटिंग का आयोजन किया गया जिसमें संगठन की नई कार्यकारिणी का गठन और उसे आगे कैसे बढ़ाया जाए, इस पर चर्चा की गई।दिल्ली के प्रभारी हरद्वारी लाल आर्य ने संगठन को विस्तार देने के लिए अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कैडर इस संगठन की नींव हैं और इस संगठन की अपनी विचारधारा को वे समाज के बीच ले जाते हैं। संगठन की कार्यकरिणी का गठन हर 2 वर्ष में होता है।अगर संगठन में कैडर अच्छा कार्य करते हैं तो वे संगठन को काफी ऊंचाई तक ले जा सकते हैं l


मीटिंग में सतीश सेन ने अपने विचार रखते हुए कहा कि आज का युग इलेक्ट्रॉनिक युग है। समाज के लोग इसके माध्यम से इस संगठन को एकजुट रख सकते हैं और अपने विचार को एक दूसरे को आदान-प्रदान कर सकते हैं। समाज में एक दूसरे के प्रति उदासीनता पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि कि लोग आपस में भी एक दूसरे से टेलीफोन पर बात नहीं करते। इतनी अच्छी सुविधा होने के बावजूद हम इसमें अभी पीछे हैं। संगठन को मजबूत बनाने के लिए एक दूसरे से फोन पर जुड़े रहें और अपने विचारों का आदान प्रदान करते रहें। क्योंकि एआईएमएनएए एक सामाजिक संगठन है, राजनीतिक संगठन नहीं है, इसलिए हमें इसे समाज के साथ जोड़ना और उनसे आपस में तालमेल बनाकर संगठन को आगे बढ़ाना है। सैन समाज के लोगों का आपस में टेलीफोन पर बात न करना बहुत बड़ी कमी है। 

संगठन के पूर्व मीडिया प्रभारी सुरेश सेन ने भी संगठन को बढ़ाने के लिए अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि संगठन की शुरुआत घर से, उसके बाद रिश्तेदारों और फ़िर रिश्तेदारों के रिश्तेदारों को जोड़कर संगठन को आगे  बढ़ाना चाहिए जिससे संगठन को ज़्यादा से ज़्यादा मजबूती मिले। मीटिंग में उपस्थिति सैन समाज से जुड़े अन्य व्यक्तियों ने भी अपने अपने विचार व्यक्त किए।

बताते चलें कि सैन समाज का भारत में काफ़ी गौरवशाली इतिहास रहा है। इस समाज की जड़ें सम्राट महापद्मानंद तक जाती हैं जो भारत के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट थे। भारत में नंद वंश की चर्चा काफ़ी की जाती है। दरअसल, महापद्मनंद के नाम पर ही इस राजवंश का नाम नंद वंश पड़ा। नंद वंश का शासन 344 ईसा पूर्व से लेकर 322 ईसा पूर्व तक का रहा। इतिहास में 22 वर्षों तक मगध पर राज करने वाला यह राजवंश बहुत प्रसिद्ध है। इसी वंश के अंतिम शासक धनानंद को अपदस्थ करके चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी।

नंद वंश के प्रथम शासक महापद्मनंद को केंद्रीय शासन पद्धति का जनक भी कहा जाता है जिसके पीछे मुख्य वजह यह है कि उन्होंने काशी, कौशल, वज्जि, मल्ल, चेदी, वत्स, अंक, मगध, अवनीत, कुरु पांचाल, गंधार, कंबोज, शूरसेन, अश्मक एवं कलिंग जैसी विशाल जनपदों को जीतकर एक सुदृढ़ केंद्रीय प्रशासन की नींव रखी थी।

यही नहीं, महापद्मनंद को क्षत्रियों का नाश करने वाला अर्थात दूसरे परशुराम के रूप में भी जाना जाता हैं। राज्य की बागडोर अपने हाथ में लेने के बाद इनके साम्राज्य की संपत्ति बहुत अधिक बढ़ गई, इनके पास असंख्य सेना भी थी।

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